जैसा की हम सभी लोग जानते है। कोरोना महामारी ने पुरे देश में रोजगार (एम्प्लॉयमेंट) के संकट पैदा कर दिए है ना जाने कितने लोगो का रोजगार इस कोरोना महामारी की वजह से छिन गया है।
ऐसे लोग जो नए रोजगार की तलाश में है उनके लिए दिल्ली गवर्नमेंट ने एक रोजगार पोर्टल (Delhi Rojgar mela) लांच किया हे।
रोजगार बाजार पोर्टल पर आप नौकरी देने वाली कंपनी से डायरेक्ट कॉल या व्हाट्सअप से कांटेक्ट कर सकते हो। इस समय बहुत सारे लोगो को नौकरी की तलाश है।
और दूसरी तरफ कंपनियों को भी काम करने वालो की जरुरत है। इस बात को ध्यान में रखते हुए दिल्ली सरकार ने रोजगार बाजार पोर्टल की शुरुआत की हे।
अगर आप नौकरी की तलाश में है तो पहला ऑप्शन चुने मुझे नौकरी चाहिए
अगर आपको स्टाफ की जरुरत है तो दूसरा ऑप्शन चुने।
नौकरी की तलाश कर रहे लोग इस साइट पर अपने मोबाइल नंबर द्वारा रजिस्ट्रेशन कर सकते है।
आपको यहाँ पर अपनी योग्यता और एक्सपीरियन्स जैसी डिटेल्स डालनी पड़ेगी उसके बाद आपकी प्रोफाइल से जुडी हुई नौकरी आपके सामने दिखने लगेगी
अपनी पसंद की नौकरी पर क्लिक करके उस कंपनी से डायरेक्ट कांटेक्ट करे।
आप अपनी प्रोफाइल अपडेट भी कर सकते हे।
इस पोर्टल पर आपको नौकरी के लिए किसी को भी पैसे देने की जरुरत नहीं है।
इस जॉब पोर्टल के लांच के मौके पर श्री केजरीवाल जी ने कहा की लॉक डाउन में जो बाज़ारे , दुकाने , कम्पनियाँ बंद हो गयी थी वह दुबारा खुल गयी है लेकिन उनमे काम करने के लिए लोग नहीं मिल रहे हे।
वहीँ जिन लोगो की नौकरी गयी है उन्हें काम नहीं मिल पा रहा है। इन दोनों के बीच तालमेल बैठाने के लिए रोजगार बाजार पोर्टल की शुरुआत की है।
जन्म : 25 जून 1975 को उत्तरप्रदेश के सीतापुर जिले में।
यूनिट : 11 गोरखा राइफल की पहली बटालियन।
कारगिल युद्ध के दौरान 11 जून को अपने सैनिको के साथ उन्होंने बटालिक सेक्टर से दुश्मनो को उखाड़ दिया। कैप्टन मनोज कुमार के नेतृत्व में सैनिको ने जुबार टॉप पर कब्ज़ा किया। कंधे और पैर में गोली लगने के बावदूज दुश्मन के पहले बंकर में घुसे।
हैंड टू हैंड कॉम्बैट में दो दुश्मनो को मार गिराया और पहला बंकर नष्ट कर दिया उनके साहस से प्रभावित होकर सैनिको ने दुश्मन पर धावा बोल दिया। अपने घावों की परवाह किये बिना वे एक बंकर से दूसरे बंकर हमला करते गए।आखिरी बंकर तक कब्ज़ा करने तक वह बुरी तरह जख्मी हो गए थेयहां वह शहीद हो गए कैप्टन पाण्डेय की इस दिलेरी ने अन्य प्लाटून और बटालियन के लिए आधार तैयार किया।
जिसके बाद ही खालूबर पर कब्ज़ा किया गया। इस साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना का सर्वोच्च मैडल परमवीर चक्र प्रदान किया गया। उन्हें हीरो ऑफ़ बटालिक भी कहा जाता है। वह 3 जुलाई 1999 में 24 साल की उम्र में शहीद हो गए थे।
कैप्टन अनुज नायर
जन्म : 28 अगस्त 1975 दिल्ली
यूनिट : 17 जाट रेजीमेंट
इंडियन मिलिट्री अकादमी से निकले ये जाबांज जून 1997 में जाट रेजीमेंट की 17 वी बटालियन में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान उनका पहला अभियान था पॉइंट 4875 पर कब्ज़ा करना।
यह चोटी टाइगर हिल के पच्छिम की और थी और सामरिक लिहाज़ से बेहद जरुरी। इस पर कब्ज़ा करना भारतीय सेना के प्राथमिकता थी। अभियान के शुरुआत में ही नायर के कंपनी कमांडर जख्मी हो गए। हमलावार दस्तों को दो भागो में बांटा गया। एक का नेतृत्व कैप्टन विक्रम बत्रा ने किया और दूसरे का कैप्टन अनुज ने। कैप्टन अनुज की टीम ने सात सैनिको के साथ दुश्मन पर चौतरफा वार किया।
कैप्टन अनुज ने अकेले नौ पाकिस्तानी सैनिको को मार गिराया और तीन दुश्मन बंकर ध्वस्त किये। चौथे बंकर पर हमला करते समय दुश्मन ने ग्रेनेड फेंका जो सीधा उनपर गिरा। बुरी तरह से जख्मी होने के बाद भी वे बचे हुए सैनिको का नेतृत्व करते रहे। शहीद होने से पहले उन्होंने आखिरी बंकर को भी तबाह कर दिया। कैप्टन अनुज नायर को मरणोपरांत महावीर चक्र प्रदान किया गया।
कैप्टन सौरभ कालिया
जन्म : 29 जून 1976 अमृतसर , पंजाब
यूनिट : 4 जाट रेजीमेंट
कंबाइंड डिफेन्स सर्विसेज के जरिये दिसंबर 1998 में इंडियन मिलट्री अकादमी में भर्ती हुए। जाट रेजीमेंट की चौथी बटालियन में पहली पोस्टिंग कारगिल में मिली। जनवरी 1999 में उन्होंने कारगिल में रिपोर्ट किया। मई के शुरुआती दो हफ्तों में कारगिल के ककसर लगपा क्षेत्र में गश्त लगाते हुए उन्होंने बड़ी संख्या में पाकिस्तान सैनिको को एलओसी के इस तरफ देखा।
15 मई को अपने पांच साथिओ – सिपाही अर्जुन राम , भॅवर लाल भगारिया , भिका राम , मुला राम और नरेश सिंह के साथ लदाख की पहाड़ियों पर बजरग पोस्ट की तरफ गश्त लगाने गए। वहां पाकिस्तानी सेना की तरफ से अंधाधुंध फायरिंग का जवाब देने के बाद उनके गोला -बारूद खत्म हो गए।
इससे पहले की भारतीय सैनिक वहां मदद के लिए पहुँच पाते , पाकिस्तान सैनिको ने उन्हें बंदी बना लिया। उन्हें 15 मई से 7 जून (23 दिन ) तक बंदी बनाकर रखा गया। उनके साथ अमाननीय बर्ताब किया गया। 9 जून को उनके शरीर को भारतीय सेना को सौंपा गया। इतना सहने के बाद भी दुश्मन कुछ उगलवा न सका।
कैप्टन विक्रम बत्रा
जन्म : 9 सितम्बर 1974 , पालमपुर हिमाचल प्रदेश
यूनिट : 13 जेएंडके राइफल
इंडियन मिलिट्री अकादमी से पास आउट होने के बाद 6 दिसम्बर 1997 को लेफ्टिनेंट के तौर पर सेना में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान उनकी बटालियन 6 जून को द्राक्ष पहुंची। 19 जून को कैप्टन बत्रा को पॉइंट 5140 को फिर से अपने कब्जे में लेने का निर्देश मिला।
उन्होंने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए और पोजीशन पर कब्ज़ा किया। उनका अगला अभियान था 17000 फ़ीट की ऊंचाई पर पॉइंट 4875 पर कब्ज़ा करना। पाकिस्तानी फ़ौज 16000 फ़ीट की ऊंचाई पर थी और बर्फ से ढकी चट्टान 80 डिग्री के कोण पर तिरछी थी। 7 जुलाई की रात वे और उनके सिपाहिओं ने चढाई शुरू की। अब तक वे दुश्मन खेमे में भी शेरशाह के नाम से मशहूर हो गए थे।
साथी अफसर अनुज नायर के साथ हमला किया। एक जूनियर की मदद को आगे आने पर दुश्मनो ने उनपर गोलियां चलाई ,उन्होंने ग्रनेड फेककर पांच को मार गिराया लेकिन एक गोली आकर सीधा उनके सीने में लगी। अगली सुबह तक 4875 चोटी पर भारत का झंडा फहरा रहा था। इसे विक्रम बत्रा टॉप का नाम दिया गया। उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा
जन्म : 22 मई 1963 कोटा , राजस्थान
यूनिट : गोल्डन एरोज , स्क्वाड्रन नंबर 17
नेशनल डिफेन्स अकादमी से पास आउट होने के बाद 14 जून 1985 को फाइटर पायलट के तौर पर भारतीय वायु सेना में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान नियंत्रण रेखा का जायजा लेने के लिए ऑपरेशन सफेद सागर लॉच किया गया।
इसमें शामिल फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता के मिग -27 एल विमान के इंजन में आग लगने के बाद वह उसमे से बहार कूदे। स्क्वाड्रन लीडर आहूजा अपने मिग -21 मफ विमान में दुश्मन की पोजीशन के ऊपर उड़ान भरते रहे ताकि बचाब दल को नचिकेता की लोकेशन की जानकारी देते रहे।
उन्हें अच्छी तरह पता था की दुश्मन कभी भी उन पर सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल दाग सकता हे। हुआ भी ऐसा ही , कुछ ही देर में उनके विमान पर हमला हुआ। वे अपने विमान से बाहर कूदे। लेकिन पाकिस्तानी सैनिको ने उन्हें बंदी बनाकर बेहरहमी से उनकी हत्या कर दी। उनके पार्थिव शरीर पर कई गंभीर घावों के निशान दिखे। उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
मेजर राजेश सिंह अधिकारी
जन्म : 30 मई 1970 , नैनीताल उत्तराखंड
यूनिट : 18 ग्रेनेडियर्स
इंडियन मिलिट्री अकादमी से 11 दिसंबर 1993 को सेना में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान 3० मई को उनकी यूनिट को 16000 फ़ीट की ऊंचाई पर तोलोलिंग चोटी पर कब्ज़ा करने की जिम्मेदारी सौपी गयी। यह पोजीशन भारतीय सेना के लिए अहम् थी क्योकि यही से सेना टाइगर हिल पर बैठे दुश्मन सैनिको पर निशाना लगा सकती थी।
जब मेजर अधिकारी अपने सैनिको के साथ लक्ष्य की तरफ बढ़ रहे थे तो दुश्मनो ने दो बंकरो से उन पर हमला करना शुरू किया। लेकिन उन्होंने बिना देर किये रॉकेट लांचर डिचमेंट को बंकर की तरफ मोड़ा और बंकर के अंदर घुसकर दो दुश्मनो को मार गिराया। इसके बाद अपने मेडियम मशीन गन को एक पत्थर से बांधकर दुश्मन को उसमे उलझा लिया और खुद दूसरे बंकर की तरफ बढ़े।
खुद बुरी तरह जख्मी होने के बाद भी बंकर में घुसकर एक पाकिस्तानी सैनिक को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद खुद भी शहीद हो गए। उनके इस साहस की बदौतल तोलोलिंग चोटी पर भारत का कब्ज़ा हुआ और जिसके बाद पॉइंट 4590 पर कब्ज़ा करना आसान हो गया। उन्हें सेना का दूसरा सर्वोच्च मेडल महावीर चक्र प्रदान किया गया।